प्रकृति व संगीत

आश्‍चर्य की बात नहीं कि मानव जाति के विकास के आदिम काल में भी संगीत का अस्तित्‍व पाया  जाता है। पुरातत्‍ववेत्‍ताओं ने खोहों में पत्‍थर के औजारों और लुप्‍त जाति के पशुओं की हड्डियों के साथ रेनडियर (प्राचीन जाति के हिरण)की हड्डी से और सींग से बनी हुई बॉंसुरी पायी है। यह बहुत ही पुरानी प्रस्‍तर युग की बात है। ले ओनाडुड़ उुले ने जमीन के नीचे से एक 11 तारों का बाजा निकाला है जो प्राय: 5 हजा़र साल पुराना है। इससे स्‍पष्‍ट है कि इतने प्राचीन काल में भी मनुष्‍य भिन्‍न भिन्‍न स्‍वरों के संक्रमण को जानता था और उससे आनन्‍द उठाता था।  सुमेरी गायकों का 4600 वर्ष पुराना चित्र पाया गया है जिसमें कई तरह के बाजे और ढोलक दीख पड़ते  हैं। मिस्र देश में प्राय: 4500 वर्ष पुराना एक चित्र पाया गया है जिसमें सात गवैये हैं। इनमें से दो तार के बाजे और तीन बॉंसुरी सरीखे बाजे बजा रहे हैं। और दो इन सबों के बीच तालियॉं दे रहे हैं।
तात्पर्य यह कि संगीत का विकास पशु पक्षियों से लेकर मनुष्य तक लगातार होता चला अाया है; अौर इसीलिये मानव संगीत का विकास भी मानव जाति के विकास के साथ ही साथ हुअा है।

गान का अाविर्भाव पहले हुअा या वाद्य का, इस विषय में मतभेद रहा है। पर प्रमुख तत्वज्ञों का यह मत है कि गान के बाद ही वाद्यों का निर्माण हुअा है।  जो वाद्य का स्थान गान से पहले रखते हैं उनकी धारणा है कि मनुष्य पहले खोखले बाँस में हवा की गति से निकले हुए ध्वनि से अौर धातु की खनक से अाकर्षित हुअा होगा फिर उसके अनुरूप स्वर निकालने का प्रयत्न करके उसने कण्ठ – संगीत या गान का अाविष्कार किया होगा।

जैसे संभवत: भाषा के बाद लिपि अौर उसके बाद व्याकरण शास्त्र का निर्माण हुअा वैसे ही गान के बाद वाद्य    अौर वाद्य के बाद संगीत शास्त्र लिखा गया। वाद्य यंत्र के अाविष्कार ने संगीत को मूर्तिमान कर दिया जिससे मनुष्य संगीत का विश्लेषण कर इसकी शरीर रचना पर विचार कर सका।

(अंश- संगीत अौर ध्वनि, लेखक – डॉ ललित किशोर सिंह, पृष्ठ संख्या ११०,११२, तीसरा संस्करण १९९९)

One response to “प्रकृति व संगीत

  1. ज्ञान वर्धक जानकारी

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