राग अहीरी जोगिया

DSC00188 भारतीय संगीत सागर स्वरूप है। साहसी नाविक कोने कोने जाकर डुबकी लगाते हैं, किंतु अंकित, चिह्नित करने के तमाम प्रयासों के बाद भी नए मोती मिलने की सम्भावना बनी ही रहती है। द्वितीय सहस्राब्दी के दूसरे दशक के समापन तक संगीत को ज्ञानाकृति  देने का कार्य सतत है। पुस्तकों के अतिरिक्त इण्टरनैट त्वरित स्रोत होता जा रहा है। यह संगीत का ही प्रवाह है कि उत्सुक को अनोखा रत्न देने को सद्य: प्रस्तुत रहता है। राग ‘अहीरी जोगिया’ भारतीय शास्त्रीय संगीत के अप्रचलित रागों में से एक है।

इस राग में ऋषभ गांधार एवं निषाद कोमल और बाकी के स्वर शुद्ध लगते हैं। इसमें पंचम स्वर का आरोह में लंघन अल्पत्व है। यथा- स रे् म ध नी् सं रें सं। सं नी् ध म, प ध नी् ध म रे् ग् रे् स। वास्तव में इस राग में अहीरभैरव भैरवी एवं जोगिया राग का बहुत सुंदर मेल है। अवरोह करते समय जब मध्यम से ऋषभ में,  जोगिया अंग से आते हैं तो वहीं से घूम कर वापस कोमल गांधार को भैरवी अंग से लेते हैं। यथा- ध नी् ध म रे् ग् रे् स। भारतीय संगीत में छायालग रागों में किस राग की छाया कैसे दिखाई जाये, यह कलाकार की अपनी समझ और राग ज्ञान पर निर्भर करता है। और यही कलाकार को परखने की सबसे बड़ी कसौटी भी है।

इस राग के गाने बजाने का समय प्रातःकाल ही है। जाति औडुव वक्र सम्पूर्ण है। राग ‘अहीरी जोगिया’ भैरव अंग का राग है। भैरव अंग में शुद्ध धैवत के प्रकारों में अहीर-भैरव, भटियार, भंखार, अहीर-ललित, सौराष्ट्र-भैरव इत्यादि अनेक राग आते हैं। यह राग भी इसी समूह का है। उत्तरांग प्रधान होने के फलस्वरूप इसका चलन दूसरे राग — जैसे अहीर भैरव या अहीर ललित — से बहुत भिन्न सुनाई पड़ता है। यह राग करूण रस प्रधान राग है।

१९७० के दशक में डॉ लालमणि मिश्र द्वारा अमरीका के ‘यूनिवर्सिटी आँफ पेनसिल्वानिया’ में संगीत विभाग की शुरुआत होने के पश्वात, अमरीका तथा अन्य देशों में स्थित विश्वविद्यालयों में भारतीय संगीत के प्रचार प्रसार हेतु ,उनके अनेक लेक्चर एवं वीणा वादन के कार्यक्रम आयोजित हुए। उन्हीं कार्यक्रमों की एक कड़ी में उनका वीणा वादन ‘रॉचेस्टर युनिवर्सिटी’ के सभागार में हुआ था। तबले पर संगत करने के लिये विश्वविख्यात तबला वादक श्री ज्ञानप्रकाश घोष थे। उनका यह अविस्मरणीय वादन जो राग ‘अहीरी जोगिया’ में ताल ‘विलंबित अद्धा’ में निबद्ध था, आज भी भारतीय संगीत की असीमित उँचाइयों को दर्शाने वाली एक अमूल्य धरोहर है। उनकी धरोहर सहेजने हेतु प्रयासरत “मिश्रबानी” ने उनके संगीत को विश्व-पटल पर प्रस्तुत करने के लिये ‘हैरिटेज अलाइव’ शृंखला के अंतर्गत अब तक दो कॉम्पैक्ट-डिस्क प्रकाशित किए हैं। जिनमें राग मालगुंजी, मुलतानी, देस इत्यादि में उनकी निर्मित वादन शैली मिश्रबानी की रचनाएं संयोजित की गयी हैं। इच्छुक श्रोता इन्हें यहां से प्राप्त कर सकते हैं। मिश्रबानी विचित्र वीणा हेरिटेज अलाइव वॉल्यूम 1 व 2

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