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सामेश्वरी

Sameshwariबाल्यकाल से ही अपनी नैसर्गिक संगीत प्रतिभा के फलस्वरूप, लालमणि मिश्र को 1500 ध्रुव-पद और 500 खयाल बंदिशें कण्ठस्थ थीं। कलकत्ता में फैली अशांति के कारण, जिस समय वह कानपुर लौटे तब उन की अवस्था अठारह वर्ष की थी। कान्यकुब्ज महाविद्यालय में संगीत शिक्षण के साथ साथ, स्व-साधना तथा शोध-चिंतन में रत रहे। एक ओर वह भारतीय संगीत के अतीत की कडियों को जोड़ने का कार्य कर रहे थे, दूसरी ओर संगीत के माध्यम से नन्हें मस्तिष्क को स्वाधीन भारतीय नागरिक बनने को तैयार कर रहे थे। उनके लिए राष्ट्र-चिंतन से युक्त बाल-गीत लिखे तथा सुगम्य धुनों में बाँधा। Continue reading

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संगीत का महात्‍म्‍य:एक चिंतन

ccastयाज्ञवल्‍क्‍य स्‍मृति में लिखा है:-

” वीणा वादन तत्‍वज्ञ: श्रुति जाति विशारद: ।

तालज्ञश्‍चाप्रयासेन मोक्ष मार्गम् च गच्‍छति।।”

अर्थात् जो वीणा वादन के तत्‍व को जान लेता है और जो श्रुति जाति तथा ताल में विशारद हो चुका है वह बिना प्रयास के ही मोक्ष का मार्ग प्रशस्‍त करता है।

उपरोक्‍त कथन भले ही आज से हज़ारों वर्ष पहले लिखा गया हो पर आज भी इस बात को अनुभव करने वाले इस कथन की सत्‍यता पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाना कदापि पसंद नहीं करते हैं। Continue reading