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कला का कारक: भाव

IMG_0575भारतीय संगीत के बृहद इतिहास के विहंगम अवलोकन पश्चात, उसे आत्मसात कर उसका सार्थक विश्लेषण करने तथा उसके प्रमाणों का सही प्रस्तुतिकरण कर पाने की क्षमता, कितने लोगों में है,  यह  एक महत्वपूर्ण प्रश्न हो सकता है। किसी भी विषय के अंतरस्थ मूल्यों को समझने के लिये, एक विशेष अनुभवसिक्त दृष्टि सिद्ध होने के उपरांत ही उस विषय के आन्तरिक प्रवाह को भली प्रकार विश्लेषित किया जाता है। भारतीय कला, दर्शन और साहित्य में निहित अपरिमित वैचारिक तथ्यों का अध्ययन एवं अनुशीलन अपने आप में एक गंभीर अभ्यासीय प्रक्रिया है जिसमें बाह्य प्रकृति जन्य किसी भी प्रकार के उल्कापातों का कोई स्थान नहीं है। Continue reading

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स्‍वरसंवाद-और-मानवीय-गुण

भारतीय संगीत वास्‍तव में मानवीय गुण और चरित्र का निष्पाप दर्पण है। जब बात होती है स्‍वर संवाद की, श्रुतियों की, स्‍वरों के लगाव की तो प्रकृति के स्‍वाभाविक स्‍वरूप में सृजन और सौंदर्य के निर्माण का शुद्धतम स्‍वरूप प्रस्‍फुटित हो उठता है। ये बात जग जाहिर सी है कि आज भारत के अंदर आम व्‍यक्ति अपनी शुद्धता खो बैठा है। दूर किसी और देश में बैठे सद्चरित्र, तेजवान और श्रमसाध्‍य मनुष्‍यों को आज अपना ही देश बेगाना लगने लगा है।

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वातायन के पार

इस बात का अहसास मात्र सांगीतिक अवचेतना के बढ़ते दायरे से ही लगाया जा सकता है कि भारतीय मानसिकता पर बेसुरे स्‍वर कितने हावी हो चुके हैं। आज अधिकांश स्‍वरों की दुनिया में गूँजते स्‍वर अपना अस्तित्‍व ही खो चुके हैं। स्‍वरों के अंदर जिस संवाद तत्‍व को भारतीय आत्‍मा -परमात्‍मा का योग मानते आये है वो संवाद तत्‍व शुद्धता के बिना प्राप्‍त नहीं किया जा सकता है। Continue reading